(१ )         तू भी आईने की तरह,
बेवफ़ा निकली
जो भी सामने आया ,
उसी की हो गयी
(२)   अब शिकायतें तुमसे नहीं,
मुझे खुद से हैं ,
माना की सारे झूठ तेरे थे,
लेकिन उन पर यकीन तो मेरा था  


(३) बस यही सोंचकर कोई सफ़ाई,
 नहीं दी हमने ,
 की इल्जाम भले ही झूठे हो,
पर लगाये तो तुमने है 
(४ ) सोचा  भी न था  ऐसे लम्हो  का सामना होगा 
 मंज़िल  तो सामने होगी  पर रास्ता न होगा
(5 )   हंसते हुये ज़ख़्मो को भुलाने लगे है हम,
हर दर्द के निशान मिटाने लगे है हम ,
अब और कोई ज़ुल्म सताएगा क्या भला ,
ज़ुल्मों सितम को अब तो सताने लगे है हम |

(6 ) जब  मुझसे मोहब्बत ही नहीं  तो रोकती  क्यों हो ,
तन्हाई में मेरे बारे में सोचती  क्यों हो ,
जब मंजिल जुदा  है तो जाने दो मुझे ,
लौट के कब आओगे ये पूछती क्यों हो |







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